भाकृअनुप- केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र गुवाहाटी द्वारा विकसित कल्चर आधारित मत्स्य पालन और पेन संवर्धन प्रौद्योगिकियों को अपनाने से बामुनी बील, असम में आदिवासी मछुआरों की आय में वृद्धि हुई: सफलता की एक कहानी

भाकृअनुप- केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र गुवाहाटी ने पूर्वोत्तर भारत के बाढ़ के मैदानों (बील) के लिए कल्चर आधारित मत्स्य पालन (सीबीएफ) और पेन कल्चर प्रौद्योगिकी के लिए प्रोटोकॉल विकसित किए।संस्थान के निदेशक डॉ बि. के. दास के नेतृत्व में संस्थान द्वारा शुरू की गई आउटरीच गतिविधियों के हिस्से के रूप में और एनईएच घटक के तहत डॉ जे. के. जेना, डीडीजी (मात्स्यिकी विज्ञान), आईसीएआर, नई दिल्ली के मार्गदर्शन में, संस्थान ने बामुनी बील (एन 26º 18' 91'' और ई 91º 45' 60''), कामरूप ग्रामीण जिला, असम में कल्चर आधारित मत्स्य पालन (सीबीएफ) और पेन कल्चर का प्रदर्शन किया। संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा 02/12/2019 को बील में एक क्षेत्र सर्वेक्षण किया गया और बोडो आदिवासी समुदाय के बील मछुआरों के साथ बातचीत की।
बामुनि बील निचली ब्रह्मपुत्र घाटी की एक बंद बाढ़ का मैदान है। यह एक 16 हेक्टेयर का, आकार में लगभग अंडाकार छोटी बील है। वर्षा के दिनों में बील में पानी की गहराई 2.5-3.7 मीटर होती है जो सर्दियों के दौरान घटकर 1.5-2.5 मीटर हो जाती है जिससे यह पेन कल्चर और सीबीएफ दोनों के लिए उपयुक्त हो जाता है। बेजेरा विकास खंड के बामुनीगांव के कुल 65 आदिवासी (बोडो) परिवार अपने पोषण और आजीविका की जरूरतों को पूरा करने के लिए बील पर निर्भरशील हैं। वर्ष 2006-07 से पहले, बील पार्टियों को, सालाना काफी कम राशि (रु. 15,000-20,000/- प्रति माह) के लिए पट्टे पर दिया गया था। बील के चारों ओर एक परिधि बांध का निर्माण एआरआईएएस सोसाइटी, असम सरकार द्वारा किया गया था जो विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित था और 2011-12 के दौरान एआरआईएएस सोसाइटी को एएसीपी परियोजना के तहत और मजबूत किया गया था। बील में बहुत कम पूरक स्टॉकिंग का अभ्यास किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 2019-20 के दौरान कम मछली उत्पादन (लगभग 6.29 टन) और समुदाय के सदस्यों (17,692 रुपये प्रति परिवार) की मामूली वार्षिक आय हुई।
स्थानीय आदिवासी मछुआरे परिवारों की आय बढ़ाने के लिए सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सीबीएफ और पेन कल्चर का प्रदर्शन करने के लिए बील का चयन किया गया था। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बी.के. भट्टाचार्य, प्रधान वैज्ञानिक और क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख; श्री ए. के. यादव, डॉ. प्रणब दास और डॉ. एस. बोरा, ने इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रम (2 नंबर) आयोजित करने के बाद बील में पूरक मछली बीज भंडारण कार्यक्रम का आयोजन 19 अक्टूबर, 2020 और 23 फरवरी, 2021 तारीख को किया। सिफ़री एचडीपीई (CIFRI-HDPE) पेन का उपयोग भी उसी समय किया गया। संस्थान ने कुल 48,000 भारतीय प्रमुख कार्प, माइनर कार्प और विदेशी कार्प सहित उन्नत मछली अंगुलिमीन (@ 3000 संख्या प्रति हेक्टेयर) स्थानीय समुदाय के परामर्श से सीबीएफ के लिए बील में छोड़ा । बील में स्थापित सिफ़री -एचडीपीई पेन (3000 मीटर /स्क्वेर क्षेत्र) को कार्प अंगुलिमीन (3-9 नं. प्रति मीटर / क्यूब) के साथ स्टॉक किया गया था और अतिरिक्त आय के रूप में टेबल फिश के उत्पादन के लिए सिफ़री-केजग्रो फ्लोटिंग फीड (28% क्रूड प्रोटीन) खिलाया गया। बामुनी बील विकास समिति (बीबीडीसी) के बैनर तले मछुआरा समुदाय ने संस्थान द्वारा प्रदान किए गए तकनीकी मार्गदर्शन का पालन किया। पेन में 6 महीने की अवधि के लिए मछलियों को पाला गया। 7 सितंबर, 2021 को बड़े आकार की मछलियों को पकड़ा गया और बील में छोटी मछलियों को छोड़ा गया। बील से मछलियों को 12-13 जनवरी, 2022 के दौरान पकड़ा गया और अच्छी कीमत (औसत 230 रुपये प्रति किलो) पाने के लिए माघ बिहू (असमिया समुदाय त्योहार) के अवसर पर बेचा गया। 2021-22 (अब तक) के दौरान बील से कुल 13.52 टन मछलियों को पकड़ा और बेचा गया। गांव के सभी 65 बोडो आदिवासी मछुआरे परिवारों की सालाना आय रु. 44,763 प्रति परिवार हैं । सीबीएफ और पेन कल्चर को सफलतापूर्वक अपनाने से कुल मछली उत्पादन में 117% की वृद्धि हुई और 2019-20 की तुलना में स्थानीय आदिवासी मछुआरों की आय में 153% की वृद्धि हुई।
श्री मोहन स्वार्गियारी, अध्यक्ष और श्री बोलिन बोरो, बीबीडीसी के सचिव के नेतृत्व में स्थानीय आदिवासी समुदाय ने बढ़ी हुई आय पर प्रसन्नता व्यक्त की और अपनी आय और आजीविका बढ़ाने के लिए पेन कल्चर सहित सीबीएफ का अभ्यास जारी रखने का वादा किया।

  

  

  


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