
पेन कल्चर तकनीक की स्थापना से इन जलाशयों से अतिरिक्त 200 टन मछली उत्पादन की आशा हैं। यह अनुमान किया जा रहा है कि अंगुलिकायों को पेन में प्रतिपालित किया जा सकेगा और नाबार्ड और दूसरे बैंकों से आर्थिक सहायता प्राप्त करते हुए अन्तर्स्थलीय मछुआरों की स्थिति में सुधार आएगा और यह एक मॉडल के रूप में स्थापित होगा । इससे परिवहन के करण मृत्यु दर और वांछित अंगुलिकायों की अनुपलब्धता कम हो जाएगी जो उत्पादन बढ़ाने में एक प्रमुख बाधा रही है। पुंटियस सराना मॉडल को भारतीय प्रमुख कार्प (आईएमसी) के साथ स्टॉकिंग किया जा सकता है, क्योंकि यह एक ऑटो ब्रीडर है और इससे एक सिस्टम स्थापित किया जा सकता है। डॉ. दास ने प्राथमिक मछुआरा सहकारी समितियों (पीएफसीएस) के सदस्यों को सलाह दी कि वे अपने उद्यम को एक रिवॉल्विंग फंड के साथ शुरू करें जिससे वे अपनी वित्तीय गतिविधियों को अपने दम पर बनाए रख सकें। छत्तीसगढ़ मत्स्य पालन विभाग के निदेशक श्री एन.एस. नाग ने बैठक में बताया कि वे अन्तर्स्थलीय खुले जल निकायों में पेन लगाने के लिए तैयार हैं और इस नियोजित गतिविधियों में सिफ़री को रसद सहायता प्रदान करने के लिए भी तैयार हैं। प्राथमिक मछुआरा सहकारी समितियों (पीएफसीएस) के सदस्यों, राज्य विभाग के एडीएफ और सिफ़री के वैज्ञानिकों के बीच पेन कल्चर प्रबंधन प्रथाओं के बारे में बातचीत हुई, जिनका छत्तीसगढ़ में पालन किया जाएगा। बैठक में सिफ़री की ओर से डॉ. ए. के. दास, डॉ. अपर्णा रॉय, डॉ. पी. के परिदा, डॉ. लियामथुमलुआइया, डॉ. सतीश कौशलेश, डॉ. पियासी देबरॉय सहित वैज्ञानिकों की एक टीम उपस्थित थी।
