
तकनीकी सत्र में तेजपुर विश्वविद्यालय के प्रो. डी.सी. बरुआ ने आग्रह किया कि हम सभी को आर्द्रभूमि के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि 'कचरा क्या फेंकना है और कचरा कहां फेंकना है?'
असम राज्य जैव विविधता बोर्ड की डॉ. ओ सुनंदा देवी ने जैव विविधता विरासत स्थल की पहचान करने के बारे में बताया ताकि कुछ जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों का संरक्षण किया जा सके।
श्री आशिम कु. बोरा, प्रभारी एनएफडीबी एनईआरसी, गुवाहाटी ने सवाल उठाया कि क्या बील विकास और संरक्षण साथ-साथ चल सकता है। एनएफडीबी की सुश्री डोरोथी का मानना है कि स्थानीय लोगों को आर्द्रभूमि क्षरण और इसके संरक्षण के तरीकों के बारे में जागरुकता दी जानी चाहिए।